मेरे जेहनो-दिमाग़ पर
हर पल कुछ यू
तेरे यादो का
पहरा सा है |
देख ले आ कर
ए-ज़ालिम-आशुफ्ताक
एक और अश्क
तेरे नाम का है |
मै कोई कवि नहीं और ये सिर्फ़ कविता नहीं।
मेरे जेहनो-दिमाग़ पर
हर पल कुछ यू
तेरे यादो का
पहरा सा है |
देख ले आ कर
ए-ज़ालिम-आशुफ्ताक
एक और अश्क
तेरे नाम का है |
हजूर! ये दिल-लगी, दिल की लगी बन गयी
तुझ से जो की यारी, बहुत महंगी पड़ गयी
न हिंदी आती है
न उर्दू आती है
न कोई और भाषा
आता है तो बस
इन कागजो पर
हाल-ए-दिल बया करना|
न तोल तू मेरे
इन लफ्जो को
इस दुनिया की भाषा से
इस जुबा को तो
ठीक से “श”
कहना भी नहीं आता|
तेरी सीने पे सर रख
इन तन्हाइयो को
भूलना कहती हूँ |
ले चल ऐ मुसाफिर
हमे भी तेरे साथ
उस राह पे
चलना चाहती हूँ |
मुझे थोड़े से
पर दे दे
ऐ ज़ालिम
उस आसमान को
मै भी
छूना चाहती हूँ |
किनारे पे बैठी हूँ
इस इश्क के
सैलाब में
डूबना चाहती हूँ |
तुम हो, तुम हो
बस अब तुम हो
हंसी तुम हो
खुशी तुम हो
मेरे दिल की
अब लगी तुम हो
लगी है ऐसी की
अब सुलझती नहीं है|
आसमा तुम हो
धरा तुम हो
मेरे दिल का
अब नशा तुम हो
नशा है ऐसा की
अब उतरता नहीं है|
तुम हो, तुम हो
बस अब तुम हो
खलिश तुम हो
कशिश तुम हो
मेरे दिल की
अब तपिश तुम हो
तपिश है ऐसी की
अब बुझती नहीं है|
अरज तुम हो
कर्ज तुम हो
मेरे दिल का
अब मर्ज तुम हो
मर्ज है ऐसा की
जिसके दवा नहीं है|
तुम हो, तुम हो
बस अब तुम हो…
बस अब तुम हो…
तेरे इश्क़ मे हम, लो से जल जाते है,
तेरे छूते ही हम, मोम से पिघल जाते है|
आता नहीं तुझे चाहने के अलावा अब हमें कुछ और,
तेरे इंतजार में हम, श्याम से ही जग जाते है|
बरसो के इंतज़ार के बाद
ये नज़र आज
तुझ पर आकर रुकी है
बरसो से छुपि
दिल्लगी तुझ पर
आकर लगी है
और तुम कहती हो
ये प्यार नहीं है|
तमन्नाओं का सैलाब
छूट गया है
आँखो में एक ओर
ख़्वाब घूम गया है
तेरे आने के नाम से
दिल फिर झूम गया है
और तुम कहती हो
ये प्यार नहीं है|
बरसो से मन बसी
तस्वीर को आज
तेरा चेहरा मिला है
मेरे अरमानो को
तेरा पता मिला है
और तुम कहती हो
ये प्यार नहीं है|
माना लिया तुझे
एतबार नहीं है
मान लिया हमे
प्यार नहीं है
पर इन अहसासों को
यु बे पर्दा न कर
और यू कह-कर
मुँह फेरा न कर
की ये प्यार नहीं है|
की ये प्यार नहीं है|
कुछ युं सुमां है हममे,
इन्तजार-ए-आलम का नशा।
हम पलक भी झपकते है,
तो सदीया गुजर जाती है।।
रेगिस्तान की ढलती श्याम मे
तेरा साथ एक मिराज सा था।
जो लम्हा बिताया साथ मे
मेरी आँखों का ख्वाब सा था।।
तुझे पा भी नहीं सकते
तुझे जान भी नहीं सकते
तेरे लिए इन साँसों को
रुका भी नहीं सकते
फिर भी कमबख्त
कोई साँस
रूक ही जाती है
तेरे नाम पे |
तेरे लिए रो भी नहीं सकते
तेरे लिए हँस भी नहीं सकते
तेरे लिए इस दिल को
धड़का भी नहीं सकते
फिर भी कमबख्त
कोई धड़कन
धड़क ही जाती है
तेरे दीदार पे |
तुझे टूट कर
चाह भी नहीं सकते
तुझे उस रब से
मांग भी नहीं सकते
फिर भी कमबख्त
सजदे-ए-दुआ मे कोई
फरियाद आ ही जाती है
तेरे अहसास पे |
भूल गयी मै
उस चाहत को
उस इबादत को
भूल गयी मै
उस तड़प को
उस कशिश को
भूल गयी मै
हां भूल गयी
उस मदहोशी को
उस ख़ामोशी को
तेरे आने का एहसास
तेरे मुलाकात
का इंतजार
भूल गयी मै
हां भूल गयी
कुछ लम्हें
कुछ पल
कुछ अहसास
लिखे है मैंने,
तेरे आँखों मे पढ़ी
किस्सो के कहानी
लिखी है मैंने,
तेरे हंसी की झंकार
से हुई दिल की कशिश
लिखी है मैंने,
लिखी है वो रात
लिखी है वो बहार
लिखे है तेरे मेरे
दिल के जज्बात,
लिखे है मैंने
लिखे है मैंने
कोई पल कोई दिन ऐसा नहीं
जब तेरे लिए सोचा नहीं
जिस दिन तेरा दीदार नहीं
उस दिन नींद दुश्वार नहीं|
तू साथ नहीं तेरा नाम सही
तेरे दीदार का हर पल इंतजार सही
हम होश मे नहीं ऐसे बदहाल सही
बिन पिंजरे की तेरी कैद सही|
कोई ख्वाब अब तेरे बिन साथ नहीं
तेरे आने की आहट पर मदहाल सही
तू नहीं तो तेरे याद सही|
तू नहीं तो तेरे याद सही|
Every morning is a door or chance to enter into new territory.
The word “Thanks” can create a miracle in life, instead of the “Sorry”.
तन्हाइयों से अब
दोस्ती सी हो गयी,
दोस्ती ये अब
गहरी सी हो गयी,
सीख लिया हमने
तन्हा रहना भी,
तन्हाइयों की दुनिया से अब
अलग सी यारी हो गयी,
जो अपने है उन से
मैं बेगानी सी हो गयी,
बेगानों मे अपनों की
कहानी सी हो गयी,
निकलती है इस फलक पर
धुप आज भी,
पर अंधेरो से हमारी
पहचान पुरानी सी हो गयी|
तुझे जो देखा
इतने करीब से
लगा की जैसी
साँसे थम गयी।
अचानक रूबरू
हुई जो तुझसे
लगा की जैसे
धड़कन बढ़ गयी।
सुना जो मेरा नाम
तेरे जुबान से
लगा की जैसे
लहू जम गयी।
तुने जो बढ़ाया हाथ
एक मुबारक देने
लगा के जैसे
कायनात बदल गयी।
हम बोला करते थे
दिन कभी साथ नही देता
रात कभी धोका नहीं देती
अब तो रात भी
धोखा दे जाती है
हमारी सोने से
पहले ही चली जाती है
दिन फिर चला आता है
एक नया इन्तेहां लेकर
कहता है कितना ढूंढेगी
ढूंढ कर देखा
रात कहती है
कितना जागेंगी
जाग कर देखा
अब तो आलम ये है
हर कोई तो इन्तेहां लेता है|
कहना तो बहुत कुछ है,
पर कह न सके |
ये लब है की,
तेरे सामने खुल न सके|
इन्हें खामोश ही रहने दो,
ये ही अच्छा है |
क्या बताये तुझे, इस दर्द-ए-दिल की दास्तां,
क्या बताये तुझे, इस दर्द-ए-दिल की दास्तां|
तू है वहाँ, हम न पहुँच सके जहाँ||
ताकती रहे ये नीगाहें, उस द्वार को उस राह को,
ताकती रहे ये नीगाहें, उस द्वार को उस राह को|
और तू ऐसे आये, और यूँ चला जाये||
क्या बताये तुझे, उस इंतज़ार-ए-आलम का नशा,
क्या बताये तुझे, उस इंतज़ार-ए-आलम का नशा|
तेरी एक झलक ही, क्या असर कर जाये||
हँसती रहे ये निगाहें, मेरे इस हाल पे इस बात पे,
हँसती रहे ये निगाहें, मेरे इस हाल पे इस बात पे|
और तू मेरे ये मदहोशी, कभी जान ही न पाये||
क्या बताये तुझे, इस दर्द-ए-दिल की दास्तां,
क्या बताये तुझे, इस दर्द-ए-दिल की दास्तां|
तू है वहाँ, हम न पहुँच सके जहाँ||