शकुन-ए-दिल हमे भी मिल गया होता।
जो तुझसे नाता जुड़ गया होता॥
मेरी भी मोहब्बतें-ए-दास्ता पुरी होती।
ए खुदा! अगर इस शिद्दत से तुझे चाहा होता॥
मै कोई कवि नहीं और ये सिर्फ़ कविता नहीं।
शकुन-ए-दिल हमे भी मिल गया होता।
जो तुझसे नाता जुड़ गया होता॥
मेरी भी मोहब्बतें-ए-दास्ता पुरी होती।
ए खुदा! अगर इस शिद्दत से तुझे चाहा होता॥