तेरी सीने पे सर रख
इन तन्हाइयो को
भूलना कहती हूँ |
ले चल ऐ मुसाफिर
हमे भी तेरे साथ
उस राह पे
चलना चाहती हूँ |
मुझे थोड़े से
पर दे दे
ऐ ज़ालिम
उस आसमान को
मै भी
छूना चाहती हूँ |
किनारे पे बैठी हूँ
इस इश्क के
सैलाब में
डूबना चाहती हूँ |
मै कोई कवि नहीं और ये सिर्फ़ कविता नहीं।
तेरी सीने पे सर रख
इन तन्हाइयो को
भूलना कहती हूँ |
ले चल ऐ मुसाफिर
हमे भी तेरे साथ
उस राह पे
चलना चाहती हूँ |
मुझे थोड़े से
पर दे दे
ऐ ज़ालिम
उस आसमान को
मै भी
छूना चाहती हूँ |
किनारे पे बैठी हूँ
इस इश्क के
सैलाब में
डूबना चाहती हूँ |